विद्या भारती की विशेषता
पंच तत्वों के सानिध्य में रहकर, पांच आधारभूत विषयों का उपयोग कर, पंचपदी शिक्षा पद्धति से बालकों का पंचकोशात्मक विकास करना।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान
संगठन परिचय
इतिहास
राष्ट्रीय विचारधारा को पुष्ट करने के कार्य में लगे कुछ बंधुओं ने इस देश की नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति एवं संस्कारों से संस्कारित करने के उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की स्थापना की। सन 1952 में सर्वप्रथम गोरखपुर में रुपए 5 मासिक किराए के मकान में एक सरस्वती शिशु मंदिर प्रारंभ हुआ। कार्य के प्रति समर्पण, लगन और परिश्रम के कारण अन्य स्थानों पर भी विद्यालय प्रारंभ हुए। कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय परिसर का प्रारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पू . श्री. माधव सदाशिवराव गोलवलकर “श्री गुरुजी” के कर कमलों द्वारा प्रारंभ हुआ। अन्य प्रांतों में भी समितियों का गठन हुआ और अनेक विद्या मंदिर प्रारंभ हुए। सन 1977 में इस योजना को विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान का नाम दिया गया। इसी नाम से संस्था पंजीकृत है। प्रधान कार्यालय दिल्ली स्थित है।
कार्य योजना
1. भारतीय संस्कृति एवं जीवनादर्शों के अनुरूप शिक्षा दर्शन विकसित करना जिससे अनुप्राणित होकर शिक्षा के लिए समर्पित कार्यकर्ता राष्ट्र की पुनर्निर्माण के पावन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में विश्वासपूर्वक बढ़ सकें ।
2. शिक्षा का ऐसा स्वरुप विकसित करना जिसके माध्यम से भारत के अमूल्य आध्यामिक निधि, परम सत्य के अनुसन्धान में पूर्व पुरुषों के अनुभव एवं गौरवशाली परम्पराओं की राष्ट्रीय थाती को वर्तमान पीढ़ी को सौंपा जा सके और उसके समृद्धि में वह अपना योगदान करने में समर्थ हो सके ।
3. विश्व के आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी उपलब्धियों का पूर्ण उपयोग करते हुए ऐसी शिक्षण प्रणाली एवं संसाधनों को विकसित करना है जिससे छात्रों के सर्वांगीण विकास के शैक्षिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति सुलभ हो सके ।
4. शारीरिक शिक्षा, योग शिक्षा,संगीत शिक्षा, संस्कृत शिक्षा एवं नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों, सहपाठ्य क्रियाकलापों एवं अनौपचारिक शिक्षा के आयोजनों से छात्रों में राष्ट्रीय एकता, चरित्रिक एवं सांस्कृतिक विकास हो ।
5. शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विभिन्न स्तरों पर व्यापक एवं प्रभावी रूप से संचालित करना, सुदृढ़ करना जिससे कुशल,
चरित्रवान एवं समर्पित शिक्षकों का निर्माण हो सके ।
6. आधारभूत एवं व्यावहारिक अनुसन्धान एवं विकास के कार्यक्रमों का सञ्चालन एवं निर्देशन करना तथा भारतीय
मनोविज्ञान को शिक्षण प्रक्रिया का आधार बनाने हेतु कार्य करना ।
7. उपर्युक्त उद्देश्यों से अनुप्राणित विदर्भ में चल रहे शिक्षा संस्थानों को सम्बद्ध करना तथा उनका मार्गदर्शन करना | विशेष रूप से ग्रामीण, जनजातीय एवं उपेक्षित क्षेत्रों में कार्य विस्तार करना तथा इन क्षेत्रों में दिशा-दर्शी प्रकल्प स्थापित करना ।
8. विद्या भारती विद्वत् परिषद् के माध्यम से प्रदेश स्तर की शैक्षिक संगोष्ठियां एवं परिचर्चाएं आयोजित करना तथा शिक्षाविदों एवं विचारकों का सहयोग एवं परामर्श प्राप्त करना ।
9. भारत सरकार की राष्ट्रीय शैक्षिक योजनाओं एवं कार्यक्रमों में आवश्यक सहयोग एवं परामर्श प्रदान करना ।
10. देश-विदेश में चल रहे शैक्षिक प्रयोगों एवं अनुभवों के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करना एवं उनसे सक्रिय संपर्क स्थापित करना ।
भारतीय चिंतन
भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास
विद्या भारती एवं राष्ट्र भक्त शिक्षा शास्त्रियों का यह स्पष्ट मत है कि शिक्षा तभी व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के लिए उपयोगी होगी जब वह भारत के राष्ट्रीय जीवन दर्शन पर अधिष्ठित होगी जो मूलतः हिन्दू जीवन दर्शन है । अतः विद्या भारती ने हिन्दु जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास किया है । इसी के आधार पर शिक्षा के उद्देश्य एवं बालक के विकास के संकल्पना निर्धारित की है।
शिक्षण पद्धति का आधार भारतीय मनोविज्ञान
शिक्षा पद्धति का निर्धारण मनोविज्ञान के द्वारा होता है । प्रचलित शिक्षण पद्धति का आधार पश्चिमी देशों में विकसित मनोविज्ञान है जो विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है । हिन्दु जीवन दर्शन पर आधारित भारतीय शिक्षा दर्शन के अनुसार बालक के सर्वांगीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है । परिपूर्ण मानव के विकास के संकल्पना पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण पद्धति के द्वारा पूर्ण होना कदापि संभव नहीं है । अतः विद्या भारती ने भारतीय मनोविज्ञान का विकास किया है और उसी पर अपनी शिक्षण पद्धति को आधारित किया है तथा उसका नामकरण “सरस्वती पंचपदीय शिक्षण विधि” किया है ।
उसके पांच पद हैं:-
1. अधीति, 2. बोध, 3. अभ्यास, 4. प्रसार, 5.स्वाध्याय एवं प्रवचन ।
प्राथमिक स्तर पर “सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षण पद्धति” तथा पूर्व प्राथमिक स्तर पर “शिशु वाटिका शिक्षण पद्धति” के नाम से इसे शिक्षा जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है ।
विदर्भ में – विद्या भारती विदर्भ
विदर्भ में कार्य का प्रारंभ आदर्श विद्या प्रसारक संघ इस नाम से हुआ। अमरावती के डॉ.पांडुरंग श्रीधर आळशी अध्यक्ष एवं नागपुर के श्री. मनोहरराव जोग सचिव रहे । बाद में विद्या भारती विदर्भ के नाम से कार्य आरंभ हुआ ।
इस में पूर्व अध्यक्ष –
श्री. मनोहरराव जोग
श्री. श्रीकांतजी पाटील
श्री. प्रेमराजजी भाला
श्री. रमेशजी धारकर
पूर्व मंत्री –
श्री. अशोकजी दवंडे
श्री. अविनाशजी नेवासकर
श्री. सतीशचंद्रजी खोत
का योगदान रहा ।
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के मार्गदर्शन में शैक्षिक जगत में विद्या भारती विदर्भ ने 2002 से कार्य प्रारंभ किया। संस्थापक अध्यक्ष के नाते श्री. मनोहरराव जोग, मंत्री श्री. अशोकराव दवंडे, विदर्भ प्रांत संगठन मंत्री श्री. श्रीकांतजी देशपांडे तथा कार्यकारिणी के अन्य कार्यकर्ता जैसे कि श्री. यशवंतराव खारपाटे, डॉ. ताराताई हातवळणे, श्री. गोपालजी खांडेलवल, श्री.श्रीकांतजी पाटील, श्री. शशांकजी बल्लाळ, श्री. सुधाकरराव रानडे, श्री. भास्करराव कुंटे, डॉ.श्रीकांतजी देशपांडे तथा श्री. प्रेमलालजी चौधरीने परिश्रम पूर्वक कार्य प्रारंभ किया।
विद्या भारती का कार्य बाल केंद्रित, क्रिया आधारित, आनंददायी शिक्षा की व्यवस्था खडी करना है। इसीलिए मुख्यतः आचार्य, प्रधानाचार्य, संस्था संचालक एवं अभिभावकों के प्रशिक्षण का आग्रह रहा। इन सभी प्रमुख लोगों के प्रयासों से बालक का विकास होगा।
प्रारंभ से ही विद्या भारती का शिशु शिक्षा पर जोर रहा। इस दृष्टि से शिशु वाटिका के आचार्यों का प्रतिवर्ष 10 दिवसीय आवासी प्रशिक्षण वर्ग लगाना प्रारंभ किया। उचित कालखंड में प्रधानाचार्य, शिक्षा संस्था संचालक एवं अभिभावकों का भी प्रशिक्षण होता है ।
आयाम
1. संस्कृति बोध परियोजना – संस्कृति बोध परियोजना के अंतर्गत 3 कार्यक्रम संचालित होते है। 1.अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा, 2. आचार्यो के लिये संस्कृति ज्ञान परीक्षा, 3. प्रश्न मंच कार्यक्रम, 4. निबंध प्रतियोगिता ।
2. शोध – विद्यालय में आनेवाली शैक्षिक समस्याओं का समाधान करने के लिये शैक्षिक शोध ।
3. विद्वत परिषद – शिक्षा एवं समाज के अन्य ज्वलंत विषयों पर विचार कर उसके समाधान हेतु प्रयत्न किया जाता है। विद्वत परिषद में समाज के प्रबुद्ध जन तथा शिक्षाविद् जनों को सम्मिलित कर उनके माध्यम से चिंतन-मनन, गोष्ठियों एवं कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिससे कि वह समाज को सही दिशा दे सके।
4. पूर्व छात्र परिषद – विद्या भारती जानने वाले खेलकूद स्पर्धाओं में सम्मिलित विद्या भारती संलग्न विद्यालयों के छात्रों का संगठन निर्माण हो।
गुणवत्ता विकास
1. प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल परिषद – शिशुओं के आरोग्य एवं शिक्षा के बारे में चिंतन और योजना करने वाली परिषद ।
2. प्रारंभिक शिक्षा परिषद – प्रारंभिक शिक्षा के बारेमें चिंतन और योजना करने वाली परिषद।
3. मानक परिषद – System for Enrichment of School Quality (SESQ) – विद्यालय गुणवत्ता विकास हेतु मूल्यांकन करने वाली व्यवस्था ।
4. खेलकूद – बालक के सर्वांगीण विकास के लिये खेल आवश्यक है। विद्या भारती की School Games Federation of India के साथ संबद्धता है । विद्या भारती प्रांत स्तर, क्षेत्र स्तर और अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न खेलों की प्रतियोगिताओं का आयोजन करती है ।
केंद्रीय विषय
1. बालिका शिक्षा
2. वैदिक गणित
3. शिशु वाटिका
अन्य विषय
1. विज्ञान, 2. प्रशिक्षण, 3. समूपदेशन, 4. प्रचार विभाग, 5. संवाददाता, 6. संस्था संचालक समन्वय, 7. प्रधानाचार्य समन्वय, 8. जनजाति, शिक्षा, 9. तकनीकी शिक्षा, 10. कौशल्य विकास, 11. पर्यावरण, 12. अभिभावक प्रबोधन ।